|| समझना ||

बातों के अर्थ.ऐसी दुविधा जीवन मे कई बार आई होगी जब हम जो कहना चाहते है सामने वाला व्यक्ति वो न समझ कर कोई और अर्थ ले ले या कुछ ऐसा समझ जाएँ जिससे अर्थ का अनर्थ ही हो जाएँ … सबसे बड़ी बात कि दोनों मे से कोई भी बात स्पष्ट करने मे दिलचस्पी न दिखाएँ … ऐसा होने पर जो फासला आता है न , उसमे कहीं ना कहीं दोनों ही दोषी होते है क्योकि दोनों के अपने अपने सवाल होते है पर इन्हे व्यक्त कौन करे ये जवाब नहीं होता बस अपने अपने पक्ष को लेकर बैठे रहते है …एक सोचता है मैंने ऐसा क्या कह दिया और दूसरा सोचता है उसने ऐसा कैसे कह दिया पर स्वयं के शब्दों पर और विचार करने के स्तर पर किसी कि दृष्टि जाती ही नहीं है … फासले कभी भी भी स्वत नहीं हुआ करते है इसमे दोनों पक्ष बराबर के जिम्मेदार होते है और अगर ये ज़िम्मेदारी एक होने मे दिखाई जाएँ तो भला फासला हो ही क्यो ….

|| बातों के अर्थ ||

अक्सर उलझ कर रह जाते है

जब बातों के कई अर्थ निकल जाते है

हम ने क्या कहा… कहाँ जरूरी रहता है

यहाँ नजारे भी नजरों जैसे नजर आते है

नियतों से वाकिफ कब होता है कोई

यहाँ पहल मे भी स्वार्थ नजर जाते है

हम कुछ कहते भी है तो अपना मानकर

फिर क्यो वो मेरी बातों पर रूठ जाते है

अगर कोई हद से ज्यादा कर ले समझ तो

नासमझ ही ठहराएँ जाते है

इत्तेफाक से मिलते है मिलने वाले भी

अपनी अपनी मंजिल को जाने हम कितने राहगीरो से टकराते है

कैसी सूरत ,कैसा लिबास ,कैसा किरदार बनाए अब हम

जिसमे ता उम्र हम किसी भाते है

बदलने बदलने के शौक मे इतना बदल जाते है हम

कि वक्त बदलने के साथ हम सब बदलना चाहते है

रिश्ते और लिबासो मे फर्क होता है यारां

छोटी छोटी बातों पर लोग नहीं बदले जाते है

किंही के होने से हो रही है इबादते मुककमल

ऐसे के साथ बैठ कर तो सजदे किए जाते है

 

सबसे सहज होता है गलत फहमी का होना जो कि अधिकांश हो जाया करती है पर इसका समाधान ना करना उलझनों को और अधिक उलझा देता है और इसमे जो सबसे गंभीर कमी रहती है वो है संवाद …. संवाद माध्यम है विचारो को सांझा करने  का और समाधान बात करने से ही मिलता है … अवसर मिलता है एक दूसरे के विचारो से परिचित होने का …इससे हम सामने वाले के व्यक्तित्व को समझ सकते है |

एक विषय के प्रति हर व्यक्ति का अलग अलग दृष्टिकोण होना स्वाभाविक है और अगर किसी बात मे कोई व्यक्ति आपके कहने का भाव नहीं समझ रहा है तो पुनः उस बात की व्याख्या करने मे या दोहरान करने मे कोई समस्या नहीं होनी चाहिए क्योकि किसी का गलत समझने से बेहतर उनको फिर से अपनी बात समझाना ताकि वो उसी अर्थ को ग्रहण कर सकें जो आप व्यक्त करना चाहते हैं।

संवाद का आनंद तब और भी श्रेष्ठ हो जाता है जब यह दो व्यक्तियों में हो या दो तरफा … इसमें सबसे अच्छा यह लगता है कि हम जो कह रहे हैं सामने वाला व्यक्ति वही समझ रहा है और सामने वाला जो कहना चाह रहा है उस बात को हम भी उसी स्वरुप में समझ रहे हैं किसी भी प्रकार की कोई बाधा… कोई उलझन नहीं है ,हम जिस स्वरुप में अपने भाव व्यक्त करना चाह रहे हैं वह भाव सामने वाला उसी स्वरूप में ग्रहण कर रहा है और जिस स्वरुप में सामने वाला अपना पक्ष रख रहा है हम भी उसी पक्ष को उसी स्वरूप में ग्रहण कर रहे हैं यह संवाद बिल्कुल निर्बाध सा रहता है और और प्रिय लगने वाला भी…

2 thoughts on “समझना || बातों के अर्थ

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