||दुआएं ||

दुआएं करना … प्रार्थनाएँ करना … अपनी मन इच्छाओ को बार बार दोहराना कि वो सब पूरी हो जाएँ … ये सभी के लिए सामान्य सी बात है और आम जन जीवन का हिस्सा भी किन्तु इसके बाद के स्थिति के लिए कितने व्यक्ति विचार करते है …. हमारी सोच तो बस मांग कर रह जाती है और हम भी अपने मस्तिष्क को बाद के विचार के लिए कष्ट नहीं देते है जबकि हमारे पास ऐसी योजना होनी चाहिए या इतना सोचा होना चाहिए कि हमे जो प्राप्त हुआ है हमे उसे किस प्रकार से संभाल के रखना है या उस स्थिति मे और बेहतरी किस प्रकार ला सकते है क्योकि सम्मान के अभाव मे जो है वो भी जाते हुए समय नहीं लगता ….

||जो मिल गया तो क्या करोगे||

जो दुआओं मे मांगते फिरते हो दर- ब- दर

जो मिल गया तो क्या करोगे

तुम्हारे बस मे नहीं एक निगाह तुम्हारी

कैसे यकीन है किसी इंसान को कैद करोगे

ये जो थोड़ा थोड़ा मरते हो रोज… जी लो एक बार

पता भी न चलेगा एक दिन सच मे जा मरोगे

एक शख्स के लिए सब को खाली हाथ लौटाया है तुमने

एक वक्त पर उसी शख्स के लिए तुम अपने चश्म- ए -प्याले भरोगे

ये महज एक ख्याल है जो तुम्हें गुदगुदाते है अक्सर

हकीकत मे नाखून की खरोंचो को कैसे भरोगे

कोई और होता भी तो जायज मानते जंग तुम्हारी 

दुश्मन जो तुम खुद के हो , खुद से कैसे लड़ोगे 

हमारा मस्तिष्क मे हर दिन अनेकों विचार आते रहते है जिनमे से अधिकांश तो आवश्यक भी नहीं होते है और ये विचार ही है जो हमे अनेक भावों का अनुभव कराते है … हमारे जीवन मे सुख दुःख इत्यादि जो  भी भाव है उसमे प्रत्यक्ष स्थिति के साथ हमारे विचारों का भी अहम योगदान  होता है क्योकि  हम स्थितियों के साथ कैसा दृष्टिकोण रखते है यह भी अहम विचारणीय बात है और विचारो को दी गई सही दिशा जीवन को हर स्थिति के साथ अच्छा ही करती है क्योकि जिन विचारो को सही दिशा प्राप्त नहीं है  वो सिर्फ भटकाव ही उत्पन्न कर सकते है मंजिल  प्राप्त नहीं कर सकते है …

यह जो विचारों का युद्ध होता है उसमे बाहरी कोई ऐसा शत्रु नहीं है जिसका भय हो क्योकि यहाँ भय स्वयं से ही होता है और हमारे विचार ही हमसे शत्रुता निभा रहे होते है … जटिलताएं  उत्पन्न करते है और हम भी इन उलझे विचारो मे स्वयं को और अधिक उलझा लेते है जबकि अभी समय इनको शांत करने का है … शांत होने पर या विचारों के स्थिरता के साथ ही हम स्वयं को अधिक सुलझा पाएंगे … ये बिलकुल वैसा ही है कि जब जल मे उथल पुथल होती है तो वो मलिन हो जाता है इसके विपरीत जब जल मे स्थिरता आती है तब मलिनता तले पर रह जाती है और पानी स्वच्छ हो जाता है … विचारो का भी कुछ ऐसा ही है अधिकांश समाधान खोजने के लिए चलने कि बजाय ठहरना पड़ता है क्योकि हर बार विजय नाद के लिए युद्ध किया जाएँ आवश्यक नहीं कभी कभी कुछ न करना भी विजय प्राप्त करा सकता है … तो हमेशा स्वयं को जीत के लिए सज्ज करे इसीलिए नहीं कि संसार पर इसका क्या प्रभाव रहेगा अपितु इसीलिए कि आप इसका क्या  प्रभाव है … आपकी स्वयं के लिए आत्म संतुष्टि सबसे अधिक मत्वपूर्ण है |

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