वो क्या कह गए || इजाजत
|| इजाजत ||
कितनी अच्छे से जिंदगी चल रही हो और अचानक वो खास व्यक्ति जिसको इजाजत (आज्ञा) देनी पड़े …. इजाजत से मुराद है कि जिस राह पर किसी और का तसव्वुर (कल्पना ) भी ना किया हो उन्हे खुद से अलग करके नई राह और मजिल कि सौगात देना …. हाँ यह अलग बात है कि वो अलग नहीं होते और हकीकत यह भी है कि साथ भी नहीं है | हर चीजे एक तरफा नहीं होती , कभी कभी जज्बे दो तरफा होती है पर वक्त किसी एक की तरफ भी नहीं होता उस वक्त इजाजत देनी नहीं होती और उन्हे इजाजत देना भी जरूरी होता है …. सभी की बेहतरी के लिए क्योकि इंसान कभी अकेला नहीं होता है बहुत से अपने उनसे जुड़े होते है और उनका उठाया एक कदम हर किसी की जिंदगी पर असर करता है तो बेहतर …. जरूरी … जायज हो जाता है रिश्ते को खूबसूरत मोड़ देना …. इजाजत देना ….
|| वो क्या कह गए ||
आंखे भरकर … खुशबुएं देकर, वो वापस ले गए है
कैसे कहा जाएं …. वो क्या कह गए है
मुसकुराहट खूबसूरत है उनकी मगर झूठ हैं
वो ख्यालों से निकलकर, हकीकत की तकदीर का हिसाब दे गए है
हम नाराज भी हो जाएं… तो ख्याल आता है
वो दूर हुए तो क्या … जब भी मिले खुदा से करीब करते गए है
कुछ जज्बे दो तरफा थे…. मगर अधूरे रहेंगे
वे इजाज़त देना नही चाहते, मगर इजाजत लेकर गए है
कुछ नज्में महज अल्फाज रह जायेगी जिंदगी के पन्नो पर
वे जाते जाते हमारे जज्बात भी लेकर गए है
रब के देने पर शक नही , काबिलियत और हक से ज्यादा अता किया है हमे
पर इक वे नही इन लकीरों में …. ये हम खुदा से कहते रहे है
एक शिफा उनकी हमारे सुकुन को है जरुरी
वे अपनी सलामती के अल्फाज हमे देकर गए है
गुलाब की खुशबुएं देकर , खुद गुलाब वापस ले गए है
कैसे कहा जाएं …. वो क्या कह गए है
आसान नहीं होता है जज्बो पर काबू पाना , हर पल … हर बात … हर चीज यादों मे बरकरार रहा करती है … हर चेहरे मे एक ही चेहरा नजर आता है पर नामुमकिन (असंभव ) नहीं है इन पर काबू (नियंत्रण ) पाना बस मुश्किल है जरा सा क्योकि हम उलझनों को ज्यादा देखना पसंद करते है …. हम इल्जाम (दोष ) लगाना ज्यादा पसंद करते …. हमे तस्सलिया (सांत्वना ) लेना पसंद आता है पर सुलझना नहीं और हकीकत से वाकिफ (परिचित ) होना … उसे कुबूल (स्वीकार ) करना मुश्किल लगता है जबकि यह पहला कदम मुश्किल है फिर आसानी अपनेआप हो जाया करती है बस करना यह कि हकीकत को कुबूल करे और मसरूफ़ (व्यस्तता ) हो जाएँ , जायज (उचित ) कामो मे … अच्छे लोगो से मेलजोल हो और एक वक्त का अच्छा हिस्सा इल्म (ज्ञान ) को तराशने मे | इल्म से ज्यादा अच्छा क्या ही है भला … यह वो ताकत है जो इंसान के अंदर के इंसान को जिंदा रखता है साथ ही आपको मजबूत बनाता है …. एक सजिन्दगी पैदा होती है जो दुनिया को समझने के काबिल (योग्य ) बनाती है , बेशक अपने लिए तो आप बेहतर है ही पर इल्म का जायज इस्तेमाल आपको औरों के लिए भी बेहतर शख्सियत बनाता है |
पुख्तगी (परिपक्वता ) इसी मे रहा करती है वो फैसले (निर्णय ) लिए जाएँ जो सबके हक ( पक्ष \अधिकार ) मे हो… खुद्गर्जी (स्वार्थ ) वक्ती सुकून (क्षणिक शांति ) का बायस (कारण ) जरूर बन सकती है लेकिन अक्सर वो फूल मुरझा जाते है जो फासला दरख्तों (पेड़ो ) से कर लेते है … इसका मायना यह है कि जिंदगी मे किसी भी फ़ौसले के वक्त आब – ओ – हवा ( परिस्थिति ) की परख ( जाँचना) कर ली जानी चाहिए , बेहद जरूरी हुआ करता है यह क्योकि जज्बाती (भावुक ) फैसले अगर होशियारी के साथ लिए जाए तो नतीजे (परिणाम ) भी अच्छे ही आते है ….