कर्म किताब जैसी शख्सियत

|| कर्म ||

कर्म … कर्म की अपनी अपनी अलग-अलग व्याख्या है जिसे आम जनजीवन और बोलचाल में हर व्यक्ति सुनता रहा है और विश्वास भी करता है पर हम इसे वास्तविक जीवन में स्वीकारते कितना है यह अभी भी विचार का ही विषय रहा है क्योंकि हम जो देते हैं वो प्राप्त करना नहीं चाहते और जो प्राप्त करना चाहते हैं वह किसी और को देना नहीं चाहते जबकि हमें प्राप्त वही होता है जो हमने दिया होता है यह सामान्य सी चीज है जिसे लोगों ने इसे बहुत जटिल बना दिया है …

जीवन में हमें जिन परिणामों की आशाएं रहती है वास्तविकता में हम वह कर्म करते ही नहीं है और ना उस तरह का कर्म करना चाहते हैं बस हमें इच्छा और श्रेष्ठ परिणामों की रहती है जिसे देखकर हम यह कामना करते हैं कि काश हमारे  जीवन में भी ऐसा कुछ प्राप्त  हो किंतु परिणाम कर्म के करने से मिलते हैं मात्र विचार करने से नहीं और विचार करने से ही अगर जीवन में उपलब्धियां प्राप्त होती तो कर्म का महत्व खत्म हो जाता , हम सोच कर ही सारे कार्य कर लेते … हमें उसे यथार्थ जीवन में वास्तविक रूप में कार्य करने की आवश्यकता ही कर्म की क्रिया चाहती है इसलिए कर्म की महत्ता को बताया गया है और जरूरी भी है बिना कर्म के  कुछ भी संभव नहीं है कर्म करना ही जरूरी है और यही कर्म आपको जिंदगी के वास्तविक परिणामों से प्रत्यक्ष कराता है मुख्यतः जिसकी आप कामना करते हैं…

 

||किताब जैसी शख्सियत ||

सबर के मायने कोई समझा नहीं

लोगों को यहां शख्सियत किताबों जैसी चाहिए

तंग आ चुके हैं हम रस्म ए दुनिया से

हकीकत भी हमें अब ख्वाबों जैसी चाहिए

हर कोई मुकद्दर से लिखें किरदार निभाने आया है

वरना कौन नहीं जिसे जिंदगी नवाबों जैसी चाहिए

एक अरसे से संभाले आए हैं किरदार अपना

यहां सब को सूरत गुलाबों जैसी चाहिए

ये कैसी कैसी बात पर जिद ले बैठा है

कि अब तूझे आब की तासीर भी शराबों जैसी चाहिए

एक नेकी को जो तू पेशानी पर पसीना लाए हैं

और मौत तुझे सवाबो जैसी चाहिए

कहीं पहुँचने के लिए कहीं से निकलना तो पड़ता ही है तभी हम अपने गन्तव्य को प्राप्त कर सकते है …उसी प्रकार विचार को यथार्थ करने के लिए उस पर कार्य करना पड़ता है  अपनी दिनचर्या मे …अपनी आदतों मे बदलाव करना पड़ता है साथ ही एक लंबे समय मे किया गया परिश्रम एक न एक दिन निश्चयेन ही सफलता का नाद करता है नहीं तो इस संसार मे कितने ही मनुष्य ऐसे है जिन्होने अपने जीवन काल मे अन्नत कल्पनाए की होंगी किन्तु  कार्य न करने की वजह से वे कल्पनाएं ही रही कभी यथार्थ नहीं हो पाई …

इस संसार मे हर व्यक्ति की  कोई न कोई कामनाएँ अवश्य ही होती है और एक कामना के पूर्ण होने पर व्यक्ति दूसरी कामना करना ….इच्छा करना या सोचना आरंभ कर देता है  इस प्रक्रिया मे कुछ व्यक्ति सोचकर ही रह जाते है बिना किसी क्रिया के और कुछ व्यक्ति सोच कर योजना बनाते है साथ कम शुरू कर देते है किन्तु पूर्ण करने से रह जाते है दृढ़ संकल्प के अभाव मे जबकि कुछ व्यक्ति ऐसे होते है जो कामना भी करते है …योजना भी बनते है …कार्य भी करते है और अंतत पूर्ण भी करते है यही वो व्यक्ति है जो संसार के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करते है और बताते है कि सही दिशा मे कार्य करने से मनचाहा या उससे श्रेष्ठ परिणाम को प्राप्त किया जा सकता है  साथ ही इससे ये ज्ञात होता है कि जो हम सोच रहे है उसे यथार्थ कर सकने मे सक्षम है और हम उसकी भी कल्पना कर सकते है जो किसी ने की  नहीं ….

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