किसान दिवस
किसान ये मात्र एक शब्द नहीं …. स्वयं मे एक पहचान है व्यक्तित्व है जो सामान्य दृष्टिगत होते हुए भी विशेष योग्यता रखता है फिर भी ये विडम्बना है कि इनका जीवन जीवन से अधिक संघर्ष है ऐसा इसलिए है क्योकि समय का बहुत बड़ा हिस्सा आसमान के नीचे व्यतीत होता है और पैरों मे कोई फैशनेबल या ब्रांडेड जूते नहीं सामान्य से सुरक्षा देते हुए जूते या नंगे पैर जमीन का स्पर्श करते है | स्वाद के कई अर्थ हो सकते है किन्तु इनके लिए वास्तविक स्वाद वो मेहनत का फल है जो फसल स्वरूप इन्हे प्राप्त होता है किन्तु फसल को बोने की कल्पना से लेकर फसल को वास्तविकता मे प्राप्त कर लेने की प्रक्रिया काफी लंबी होती है साथ ही कई परीक्षाओं पूर्ण भी …. जैसे माँ गर्भ मे भ्रूण का सिंचन करती है किसान उससे भिन्न भी नहीं है संतान तो फिर भी माँ के हिस्से आती है किन्तु किसान को तो उसके अधिकार का हिस्सा भी प्राप्त नहीं होता …कितनी विचित्र और सोचनीय बात है …
किसान
जो जमीन से जुड़ा उसकी पृष्टभूमि पर प्रश्न है
कोई परिचित भी है जमीं पर उगता कैसे अन्न है
जिनके देह मे दमक परिलक्षित होती स्वेद से है
लोग भूल गए है जीवन की बुनियाद भी खेत से है
बादलों से अधिक बरसते जिनके अश्रु है
नजारे क्या वो तो फसले निहारे ऐसे किसान के चक्षु है
कभी मौसम कभी मंहगाई कभी मंदी कभी दलाल
हर पग परीक्षा है कितना किया जाए मलाल
जिसके लिए कर्म भूमि ही धर्म का स्वरूप है
जब भूमि ही बिक जाएं तो क्या कर्म क्या धर्म का रुप है
इतने संयम पर अश्रु के लिए स्थान नही आंखों से रक्त बहता है
रोटी हो सामने तो सोचो हर दाने दाने के पीछे कितना संघर्ष रहता है
फसल को फसल बनाना इतना भी आसान नहीं है सबसे पहले मिट्टी को फसल के लिए तैयार करना उसके बाद बीजों को बोना फिर उसे सही तापमान और देखभाल करके अंकुरण की प्रतिक्षा की प्रतिक्षा इसे बाद मौसम , जानवरो, किट पतंगों से फसल को बचाना और फसल के पकने तक ये सब सतत चलता रहता है इसके साथ ढेर सारी चिंताएं कि सबसे पहले फसल को प्राप्त करना फिर खराब होने से बचाने के साथ लिए देखरेख करना होने के बाद उचित मूल्य पर देना जो किसानों को कहां मिल पाता है बड़ी लंबी चैन है आम आदमी और किसानों के बीच …. आम आदमी से ज्यादा वसूल किया जाता हैं और किसानों को तो कभी कभी लागत तक प्राप्त नही हो पाती…. कभी सोच के देखे तो क्यों ही कोई व्यक्ति अपना जीवन समाप्त करने का निश्चय करता है तो ये आसान नहीं है पर परिस्थितियां ही ऐसी हुई कि कोई ओर राह दिखाई भी नही देती है क्योंकि खेतो मे पसीना ऐसे बहा मानो खून भी अब शुष्क हो गया हो फिर लागत ना मिले तो कर्जे तो वो आशाओं उम्मीदों से दबा किसान अब कर्जे में भी दब जाएं फिर किसी के लिए भी परिवार को इस दयनीय स्थिति में तो पल पल मरण समान ही है फिर किसान तो ईमानदार है ही तो ईमानदार व्यक्ति तो कर्जदारों की लाइन देखकर बिकती जमीन घर देखकर पल पल अपनी योग्यताओं पर विचार करके जीवन जीता कब है कौन जाने …. कहने को कितनी योजनाएं और लाभ है इनके लिए पर इनको मिलता कितना है कभी शिक्षा, कभी जानकारी, कभी जागरूकता के अभाव में वो अपने अधिकारों से भी वंचित हो जाते है । इतनी दौड़ भाग वाली जिन्दगी में शायद किसी को याद भी नहीं रहता गांवो से शहर की और पलायन, किसान का मरना , युवा का खेती में रुचि कम होना किसानों के आस्तित्व से मनुष्य के आस्तित्व पर प्रश्न चिह्न है ….।