|| लकीरें ||
लकीरें… लकीरो से क्या मिलेगा कैसे पता किंतु यह निश्चित है की इन हाथों से अगर कुछ काम किया जाए… मेहनत की जाए …परिश्रम किया जाए तो निश्चित ही एक सुंदर और व्यवस्थित भविष्य हम सभी के प्रतीक्षा हेतु प्रस्तुत है किंतु अगर यही भविष्य इन लकीरों में खोजते रहे तो भविष्य की छवि उतनी ही धुंधली है, जितनी अव्यवस्थित और अस्पष्ट हमारे हाथ की लकीरें हैं । जीवन में परिणाम निश्चित ही प्राप्त होते हैं चाहे हम कुछ करें या चाहे ना करें । हम जो करते हैं या तो हमें उसके परिणाम मिलेंगे या हमने जो नहीं किया है हमें उसके परिणाम मिलेंगे तो जब हमें परिणाम मिलना तय हैं, तो इसे बेहतर परिणाम के रूप में लेकर आना यह हमारी जिम्मेदारी का हिस्सा है अगर हम किसी विषय या बात से अनभिज्ञ हो तो हम समझ सकते हैं कि जो हो रहा है वह सही नहीं है या हमारे अनुकूल नहीं है किंतु हमारे जानते हुए भी अगर हम यह गलतियां दौहरा रहे है तो फिर दोष किसका है नि संदेह है हमारा….
|| ये लकीरें किसके हक में है ||
ये वक़्त हमेशा क्यों आजमाता है
कौन जाने क्या चाहता है
जो नहीं है उसी की जिद्द है
हर कोई हकीकत से रूबरू कहाँ हो पाता है
तेरी किस्मत तेरी जिद्द में है
जिसने लिखी है कोई पूछे उनसे
ये लकीरें किसके हक में है…….
जो सोचा वो मिला नहीं
जो मिला वो चाहा नहीं
इन अंधेरों की तलाश है अधूरी आज भी
ये खुद को आफताब समझने वाला जुगनू
मुझे अपनाता नहीं
तेरी खामियों को यूँ संवारने के बाद भी कौन पूछे..
ये लकीरें किसके हक में है……
ऐसा नहीं अधूरे हैं हम
ये तन्हाई हमे मुकम्मल करती है
मैं मकसद खोज रहीं हूँ जो
उसमे दम भरती है
जिनकी नीव तक खोखली देखी है मैंने
मेरे वजूद पर शक करती है
मेरी किस्मत खुली लकीरों मे नहीं
मेरी बंद मुट्ठी मे है
अब खुद ही लिख डालूंगा
ये लकीरें किसके हक में है……..
हर बार जो हम सोचे हमें वही मिले जरूरी नहीं है और जो मिला है उसकी हमने आशा की हो यह भी जरूरी नहीं है किंतु जरूरी यह है कि जो हमारे पास उपलब्ध संसाधन है, हम उसका उपयोग किस प्रकार काम करते हैं उन संसाधनों को किस प्रकार श्रेष्ठ सिद्ध करते हैं क्योंकि पूर्णता विचारों से अधिक और कहीं नहीं है … तो विचारों को मजबूत कीजिए और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाएं, इस तरह कि लक्ष्य के अतिरिक्त अब और कुछ ना नजर आए और जितनी भी बाधाएं हैं वह खुद ही दूर हो जाए और अंत में जो प्राप्त होगा वहीं सुख है….