मजदूर… खुशियां खरीदने 

मजदूर दिवस 

मजदूर … दुनिया मे कौन है जो मजदूर नहीं है या काम नहीं करता … हर किसी को किसी न किसी ने बांध रखा है , कोई स्वेच्छा से तो कोई परिस्थितियों के कारण बंधा हर कोई है … कोई सपनों का भार उठाएँ चल रहा है तो कोई जिम्मेदारियों का तो कोई हालातों का … उम्र के अलग अलग पड़ाव होते है जिसमें अलग अलग आवश्यकताएं होती हैं अलग अलग विचार होते है साथ ही हालात भी एक जैसे हो आवश्यक नही है और यह जीवन के मोड़ सभी के जीवन में आते ही है …. मुनष्य क्या है आवश्यकताओं और इच्छाओं में झूझता सा कोई … कभी अपने लिए तो कभी अपनो के लिए …यही तो जीवन है  और  अपने घर के लिए हर व्यक्ति सब कुछ करना चाहते हैं और यथा संभव हो प्रयास भी करता है किंतु उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर वह जो मेहनत कर रहा है वह उनके परिवार के लिए और अपनो को उचित साधन उपलब्ध करवाने के लिए कर रहा है जो कि उसकी जिम्मेदारी और कर्तव्य दोनों है । जब हम किसी से कार्य करवाते हैं तो उसे उनके कार्य के अनुसार मेहनताना दिया करते हैं और यह महनताना उनकी परिश्रम की कीमत है कोई उपकार या एहसान नहीं , तो इसे देते हुए हमें सामने वाले का सम्मान कायम रखना आवश्यक है और अगर कोई व्यक्ति ऊंचे पद पर या समृद्ध है तो वह उसके परिवार के लिए है ना कि अन्य लोगों के लिए और वह जो भी कर रहा है वह अपने परिवार के लिए कर रहा है किन्हीं अन्य के जीवन यापन या दान देने के लिए नहीं तो इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि जितना हम अपने स्वाभिमान और सम्मान का ध्यान रखते हैं, उतना ही हमें सामने वाले व्यक्ति के सम्मान का भी ध्यान रखना चाहिए इस बात कोईअंतर आता है कि वह किस पद पर है, क्या काम कर रहे है किंतु हमें सबसे पहले यह ध्यान देना चाहिए कि वह एक इंसान है और उनका भी जीवन है, आत्मसम्मान है और वह भी अपने परिवार, अपने जीवन को अच्छा करने के लिए कार्य करते है और वह यह अधिकार रखते है कि उनके कार्य का और उनके परिश्रम का सम्मान किया जाए क्योंकि अगर वही इन कार्यों को ना करें तो समाज में अव्यवस्थाएं निश्चित ही उत्पन्न हो जाएंगी । यह वर्ग समाज में व्यवस्था और सुविधाओं को बनाने का कार्य भी करते हैं जो की सम्माननीय है…..

 

मजदूर… खुशियां खरीदने 

तपती धूप में काम करता है

दर्द थकान को नाकाम करता है

उम्र बड़ा देती है झुर्रियां चेहरे की

वो खरीदने कुछ खुशियां अपनों की

पल पल खुद को नीलाम करता है…

 

जिसके खुद के घर के सपने कच्चे होते हैं

वो दहकती दुपहरी मे नंगे पांव छतो पर मकान बनाते है ……

जरूरतों के आगे वो भूल ही जाता है

कि उसके सपने उससे क्या चाहते हैं

जिंदगी कभी सस्ती नहीं होती….

फिर भी जिंदगी को आम करता है

वो खरीदने कुछ खुशियां अपनों की

पल पल खुद को नीलाम करता है…

 

वो खरीदने कुछ खुशियां अपनों की पल पल खुद को नीलाम करता है

पैसों का गुरूर… जरूरत की हकीकत को झुका देती है

बेबसी अक्सर खामोशी को आंसुओ में बहा देती है

इंसान होकर भी…. हम नहीं समझ पाते हैं इंसान को

यहीं भावहीनता ही हमे इंसान ना होने का प्रमाण देती है

वो ढलती शाम तक डांट फटकार को मन में भरकर

लबों से मुस्कराहटे अपनों के नाम करता है

वो खरीदने कुछ खुशियां अपनों की

पल पल खुद को नीलाम करता है…

यहाँ हर कोई मजदूर है … सभी अपनी जीवन कि कल्पनाओ को वास्तविक करने के लिए कोई ना कोई कार्य करते है, बस अंतर इतना है कि कोई कड़ी धूप मे पसीने से लथपथ तो कोई वातानुकूलित [A ॰ C॰ ] कमरो मे बैठ कर काम करते है साथ ही सभी किसी ना किसी के आदेश की पालना करते है …. ऐसी स्थिति मे कोई भी स्वतंत्र नहीं है किसी न किसी के अधीन तो कार्य करना ही पड़ता है …

जीवन सहज कब होता है … बस सब इसी प्रयास मे लगे है कि जीवन सहज कैसे किया जाएँ और इसी बीच बिता कल नए नए सबक दे जाता है तो आने वाला कल नई नई चुनौतियाँ  | इनमे हम संतुलन बनाते रहते है जो कि आवश्यक भी है पर कई बार हम इनमे स्वयं को ही खो देते है कि हमारा अस्तित्व क्या है या आवश्यकता के चलते अपनी अस्मिता को भी किनारा कर देते है , कई बार हमारे अपनों की खुशी को बनाएँ रखने के लिए भूल जाना पड़ता है कि हम भी मनुष्य है जिसमे भाव है …

हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि हम अगर किन्हीं को कोई रकम अदा कर रहे हैं तो निश्चित ही यह उस परिश्रम के बदले हैं जो की किया गया है । हम मुफ्त में किसी को कुछ भी नहीं देते हैं और अगर दे भी रहे हैं तो वह उनके उस परिश्रम की श्रेष्ठ होने का परिणाम भी हो सकता है  और किन्हीं से स्वेद की महक आना, तन का मलिन होना और उम्र से पहले ही उम्र के बढ़ने के लक्षण दिखाई देना कहीं ना कहीं यह दर्शाता है कि उन्होंने उम्र से ज्यादा परिश्रम किया गया और वह सिर्फ इसलिए है ताकि वह अपने जीवन को भी कहीं ना कहीं इस बढ़ते …. चलते…दौड़ते समाज की दौड़ में खुद को उस गति के अनुसार ला पाएं…..कहीं ना कहीं उन्हें जो सुकून चार दिवारी में चाहिए वह वही सुकून दूसरों की चार दिवारी बनाकर ले रहा है । हमें यह समझना चाहिए कि अगर व्यक्ति कड़ी धूप में कार्य करना उनका चयन नही आवश्यकता है |

बिना कार्य के तो जीवन जीवन ही नहीं है … इन्ही काम के तरीको से हमे अपना मूल्यांकन करने का अवसर मिलता है … हमे अपनी योग्यता और रुचियों के बारे मे जानकारी मिलती है साथ ही हर बार हम हमारे लिए कार्य का चयन नहीं करते , कभी कभी हमारी योग्यता अनुसार कार्य भी हमारा चयन करता है इसीलिए यह हमारा कर्तव्य है कि हम जितना हो सके अपने ज्ञान और  योग्यता का विस्तार करके जितना हो सके स्वयं को परिष्कृत करते रहे ताकि सही समय के आने पर हम अपने अर्जित ज्ञान और कुशलता का सार्थक उपयोग कर सके क्योकि कार्य करना हमे उपयोगी बनाता है और कुछ ना करके ऐसे ही निरर्थक बैठे रहने से कहीं अधिक श्रेष्ठ है स्वयं के लिए अवसरों का निर्माण करना …. अपने आप को अपनी योग्यता से बेहतर स्वरूप प्रदान करना  |

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