राह
किन्ही की अहमियत इतनी होना कि एक बार को तो स्वयं को दरकिनार कर देना पर उनको नहीं …. उनकी तकलीफ को अपनी तकलीफ मानना , उनकी खुशी को अपनी खुशी मानना , अपनी खैर- ओ- खैरियत को अहम न मानकर उनकी सहूलियत का ख्याल रखना , उनकी बातों पर तवज्जू करना , उनकी पसंद ना पसंद का सोचना और भी कई सारी चीजें हो सकती है साथ ही सामने वाले की तवज्जू के मेयार इतने जरूरी और अहम हो जाते है कि हम उस साँचे मे ढलना पसंद करते है जो किन्ही और के हिसाब का है ….. अगर ये बदलाव खुद कि इच्छा से है तो बेशक खुशी का कारण बनता है …..
|| सफर – ए – जिंदगी ||
फ़िक़ उन्हें है ……… और पेशानी (माथा) पर बल हमारे पड़े है
ये किस राह पर हम चल पड़े हैं
तिलस्मी (जादुई) आईना है वो …
हकीकत से खूबसूरत तस्वीर दिखाता है
दर्द भी मुस्कराहटों की वजह बनता है कभी
उम्र से उनके उसूल बड़े है
ये किस राह पर हम चल पड़े हैं
रात सोने की … हम सोच में गुजार देते हैं
कभी बात करके … कभी याद करके गुजार देते हैं
हदों में बांध दिया ….. कायदों का लिहाज़ करके खुद को
सोच -ओ- ख्याल से एक रहे …. भला हम कब बिछड़े है
ये किस राह पर हम चल पड़े हैं
कुछ सन्नाटे है… आहटें है … जो चाहते रखती है सरेआम होने की
चश्म छलके आब नहीं … दास्ताने है गौहर(मोती) को पिरोने की
दफ्न किये बैठे हैं दिल में … कब्रों का जहान हो जैसे
ये कैसी विरासतों को हम संभाले पड़े हैं
ये किस राह पर हम चल पड़े हैं
मुखौटे बुरे ही सही …. हमने हकीक़त के पीछे सब छिपा दिया
स्याही नहीं लहू बिखरा था पन्नों पर …. पढ़ने से पहले ही मिटा दिया
कैद किये कई किस्से झुकती पलकों में
ना जाने क्यों सभी हमे नजारे दिखाने पर अड़े थे
ये किस राह पर हम चल पड़े हैं
बेवजह दर्द से फांसला रखते हैं सब .. बड़ी सच्चाई है इसमे
इससे ही जीना ….. जीना लगता है
उसके रंग में रंगने की चाहत में बेरंग हूँ अब तक … ये भी कहाँ सबको अच्छा लगता है
थोड़े समझ के परे है … पर हम भी सभी की तरह है
खुद से ही मान जाते हैं … और खुद से ही लड़े है
ये किस राह पर हम चल पड़े हैं ……
ऐसे सफर को तय करना जिसकी मंजिल का पता न हो पर जिसके साथ सफर किया जा रहा है, उनको अच्छे से समझ लिया जाएँ तो मंजिल अक्सर खुबसूरत हुआ करती है और सफर भी … पर किन्ही पर यकीं करना, समर्पण करना आसान है, मुश्किल तो ये है कि उस व्यक्ति पर करना जो इस यकीं और समर्पण की कद्र कर सके वरना वक्त, जज्बे, अश्क, एतमाद (विश्वास) जायां हो जाया करते है
अगर सफर तन्हा हो तो बात अलग है पर कोई सफर में हमसफ़र है तो सफर और मंजिल से पहले साथी की हकीकत से वाकिफ (परिचित) होना ज्यादा ज़रूरी होता है और ये उनके साथ समय बिताकर ही जाना जा सकता है …. जिस पल को आप मुक्कमल (पूर्णतया) तौर पर तैयार हो तब कदम मजबूत और जिन्दगी आसान हो जाती है …
कई बार जल्दबाजी में निर्णय लेना अच्छा नहीं रहता है जिसका हर्जाना भी चुकाना पड़ता है कभी कम तो कभी ज्यादा …. ये वो सबक है जिसमे इम्तिहान पहले होते है तो उसके लिए तैयार रहना हमारी जिम्मेदारी बन जाती है …. किस के मुस्तकबिल (आगे आने वाला कल ) मे क्या है ये किसी को खबर नहीं है लेकिन उसके लिए तैयार रहना … हर फैसला सोच समझ कर परखकर करना …. हमारे खुद के लिए जरूरी है और इसके लिए हमे ही जागरूक होना होगा ताकि हम अपने लिए और अपनो के लिए बेहतर कल को बना….