ऐ … स्त्री तुझे आभार है

|| एक स्त्री ||

एक अच्छी स्त्री क्या है इसे सिद्ध करने हेतु कई मापदंड प्रस्तुत हो सकते हैं क्योंकि हम जिस समाज में रहते हैं उसकी अपनी एक व्यवस्था है ,एक निश्चित मापदंड बना रखा है किंतु यह सदैव संभव नहीं है कि हर व्यक्ति जो उस मापदंड में नहीं आता है वह सही नहीं है या उसे हम अच्छे या उचित होने की उपमा नहीं दे सकते । वास्तविकता में अच्छी स्त्री वही बताई गई है जो की देना जानती हो, जो दूसरों के लिए जीवन जीना जानती हो इसके विपरीत जहां स्त्री अपनी लिए कुछ विचार करें या उस पर काम करने की कोशिश करें तो अधिकांश बार उसे स्वार्थी और यह जो अच्छेपन का नाम दिया गया है वह छीन लिया जाता है क्योंकि हमने अच्छी स्त्री को उसे ही माना है जिसमें देने का गुण हो और यहां तक कि अगर वह सब कुछ कार्य करते हुए भी अपने लिए सोच ले तब भी वह एक अच्छी स्त्री नहीं बन पाती है….

 

|| ऐ … स्त्री तुझे आभार है ||

शब्द से अर्थ को अर्थ से अस्तित्व को
जिसे संसार साकार है
जिनसे सृष्टि को सृजन का आधार है
ऐ… स्त्री तुझे आभार है

कब तक इन समाज के सांचों में ढालेगी खुद को
तुझे पता होना चाहिए तू क्या है
तेरा जीवन तेरे सपने करने तुझे ही पूरे हैं
फिर किसी का होना ना होना क्या है
तू जान खुद को तेरे कितने रूप कितने प्रकार हैं
ऐ… स्त्री तुझे आभार है

यह सजना सवारना एक परंपरा है
इसे और आगे बढ़ाएं जा
चूड़ी कंगन अगर बने जंजीर
तो इन हाथों को कलम से सजाए जा
तेरी आत्मनिर्भरता ही तेरा शृंगार  है
ऐ … स्त्री तुझे आभार है

तुझसे तेरी चाहत क्या है
तुझे ही चुननी तेरी राह क्या है
हर कोई घात लगाए बैठा है
तुझे इतना तो पता होना चाहिए
कि सही समय पर सही प्रहार क्या है
तेरे निर्णय ही तेरे भविष्य का आकार है
ऐ स्त्री तुझे आभार है

तू जन्म देती….तू पोषण करती
तू निभाती हर भूमिका….
सर्वस्व अपना अर्पण करती
तेरा जीवन भी चाहता
कि तू लाएं…तेरे लिए नई बहार है
ऐ … स्त्री तुझे आभार है

सबके लिए सब कुछ किया जाए इसमें कोई समस्या नहीं है किंतु सबके लिए खुद को खो देना यह भी उचित कहां है क्योंकि हमारा भी जीवन है , हम भी मनुष्य हैं और जीवन का अधिकार सभी को है । खुद के लिए सोचना कभी भी गलत नहीं हो सकता है और जब हम खुद को ही प्राथमिकता नहीं दे पाएंगे …. हम खुद को ही नहीं समझ पाएंगे तो हम किन्हीं से क्या उम्मीद करें कि कोई हमें समझेगा जबकि हमें सभी ने इसलिए ही दरकिनार किया है क्योंकि हम अपने लिए कोई किनारा नहीं खोज पाए हैं । हम वह कश्ती बने हुए हैं जो सिर्फ बहाव के साथ बहने वाली हो , बिना कोई प्रश्न किए क्योंकि प्रश्न करना इस व्यवस्था का हिस्सा नहीं है और जब व्यक्ति गढ़े हुए नियमों से अलग चलने का प्रयास करता है तो उसे सामान्य तो स्वीकार करना जटिल ही रहा है और कहीं-कहीं पर तो स्त्री भी इस व्यवस्था के पक्ष में है क्योंकि अगर हमने इतना सहा है तो फिर हमारी आने वाली पीढ़ी भी सुकून और शांति से कैसे रह सके इसलिए कहा जाता है अपने दुःख से अधिक सामने वाले का सुख खलता है…. किसी की नहीं सुने अगर कुछ चाहिए और प्राप्त करना है ….अपने लक्ष्य को पूरा करना है तो सिर्फ अपनी सुने और उस लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाएं और स्त्री होने का उत्सव साल भर चलना चाहिए यह किसी दिन विशेष के लिए आवश्यक नहीं ।

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