जीवन की व्यस्तता
जीवन की व्यस्तता …… जीवन की व्यस्तता मे व्यक्ति इतना व्यस्त हो चुका है कि जीवन मे से मानो जीवन ही लुप्त हो गया है , इसमे कोई शंका नहीं है कि आधुनिकता ने अपनी छाप छोड़ी है किन्तु इसके परे हम प्रकृति को विस्मृत करते जा रहे है जबकि इस यथार्थ से हम सब परिचित है कि सब क्षणिक है यद्यपि हम अतीत और भविष्य की इतनी चिंता करते है कि वर्तमान कहाँ है किन्हे पता है …… वास्तविकता तो है इसी क्षण मे…. सूर्योदय- सूर्यास्त देखने मे …. शशि कलाओ को निहारने मे …. वर्षा नाद श्रवण मे … पक्षी कलरव को सुनने मे …. पौधे के बड़े होने मे …. पुष्प के खिलने मे … बच्चो के हसने मे ….. बड़े बुजुर्गो के उम्र के अनुभव मे …. साथी के वो संकेतो वाली भाषा मे …. जो सड़क पर जीव है उनके आंखो की आशा मे और हर कहीं आज स्थिर है बस दृष्टि मे होकर भी दृष्टि मे नहीं है , इसका मुख्य कारण यह है कि हमे कृत्रिम मे रुचि है …. बनावट मे रुचि है ….उस चका चौंध मे रुचि है जो हमे वास्तविकता नहीं दिखा रहा बल्कि जो प्रत्यक्ष है …. प्राकृतिक है , उससे औंझल कर रहा है | अभी हम जीवन की ऐसी दौड़ मे है जिस समय यह सब विचारने का समय नहीं है किन्तु जब समय ही समय होगा तब न तो ये ऊर्जा होगी न जीवन का वो स्वरूप जिसमे हमे रुचि थी ….
|| सब मिट्टी हो जाता है ||
किस चकाचौंध में खो जाता है
नजर उठा के देख सब मिट्टी हो जाता है
गलतफहमियां संभाल रखी है … खुशियां पाने का जरिया पैसा है
फिर ये पैसा दिखाता है कि जो साथ है … वो कैसा है
जरूरतों में इतना उलझा रहा कि
रिश्तों की जमीं सुखी पड़ गई
अब समय ही समय है सोचने को जीवन के इस दौर में
ढूंढू कहां उनको जो मेरे अपने जैसा है
मेरे कर्मों का परिणाम ही मेरा भाग्य बनाता है
नजर उठा के देखा तो सब मिट्टी हो जाता है
कुछ क्षण की जो कमी रिश्तों में थी वो आंखो में भर आयेगी
मेरी लंबी नींद के लिए दुनिया सेज सजाएगी
मेरी हर एक बुराई में भी गुणों का बखान होगा
मेरे खाक होने के बाद, जहन से सबके मेरी यादें मिट जायेगी
इस धुंए में मेरा अतीत खो जाता है
नजर उठा के देखा तो सब मिट्टी हो जाता है
किस चकाचौंध में खो जाता है
नजर उठा के देख सब मिट्टी हो जाता है
समय चक्र घड़ी की उस सुई जैसा है जो घूम कर वही आता है जहां से शुरू किया जाता है , वस्तुतः हमे वही प्राप्त होता है जो हम देते है ….. हाँ समय तय नहीं, कभी ज्यादा कभी कम पर मिलता वही है जो दिया जाता है इसके साथ ही ये धरा पूरी एक ही है और इस पर आसरा लेने वाले सभी इस धरा का हिस्सा है चाहे वनस्पति हो या जीव -जन्तु ,पक्षी हो या पहाड़ और इंसान भी तो जैसा बोया जाएगा काटोगे भी वैसा ही …… समय की कोई सूरत नहीं है किन्तु आपको क्या किस सूरत मे मिलना है यह वही जानता है
उचित बात की प्रतिक्रिया आवश्यक है किन्तु सुविचारित प्रकार से किन्ही को कष्ट देना … व्याकुल करना या अपना स्वार्थ सिद्ध करने के अनुपयुक्त प्रकार का चयन उपयुक्त नहीं है …. यदि आप स्वयं के भावो का सम्मान करते है, अपने आत्मसम्मान को महत्व देते है, अपने लिए कष्ट का अनुभव करते है तो सामने वाले के लिए भी ये सब सामान्य और अनिवार्य भी तो व्यवहार मे मापदंड भिन्न- भिन्न क्यों …. इसीलिए समय गोल है
जीवन एक ही है इसी मे प्रयोग भी करने है और हर प्रयोग के सफलता असफलता होने से शिक्षा भी लेनी है पुनः प्रयोग करने है आगे बढ़ना इन सभी के साथ जीवन का आनंद भी लेना है और यही आनंद सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ….