|| दम तोड़ती आशाएँ ||
कई बार सारी आशाएं समाप्त नजर आती है … ऐसा अनुभव होता है कि अब कुछ नही बचा है ना आगे कोई रास्ते नजर आते है ना पीछे मुड़ने का कोई विकल्प होता है बस समय की धारा में चलते जाना होता है तब कोई साथ भी नही होता है या हम स्वयं ही किन्ही को साथ नही रखना चाहते , वो पीड़ाएं इतनी महत्त्वपूर्ण हो जाती हम उनका साझेदार किंही को भी नही बनाना चाहते है बस स्वयं ही द्वंद में रहते है …. और कुछ धारणाएं जो पूर्व स्थापित रहती है वो हमे अनुभव कराती है कि किसी बताने से अच्छा है खुद पर गुजार ली जाएँ … क्योंकि किस पर भरोसा किया जाएं और किस पर नहीं या कौन इतना परिपक्व है , जो भावो को उसी रूप में स्वीकार करे जिस रूप में कहे गए है या उससे संबंधित कोई ऐसी विचाराधारा का निर्माण करे जो उचित ना हो इसी असमंजस में बना रहता है …
|| जो कहीं के नहीं रहते ||
कुछ ख्याल तड़पाने ही आते हैं
कुछ ख्याल तड़पाने ही आते हैं
सच्चा था इसलिए अकेला हूँ
झूठ होता तो ..काफ़िले साथ आते है
आइना दिखाया तो ख़फ़ा हो गये
वहीं यार … जो मुझे अपना दोस्त बताते है
हमने अजनबियों (अपरिचित) को भी अपना माना
कहाँ से सीखते है वो हुनर … जहां अपने अपनों को सताते है
रेशम डोर संभाली थी हाथों में , ज़ख्म कैसे मिले पता नहीं
क्या ज़्यादा संभालने पर भी अपने छोड़ जाते हैं
राहों मे अकेला हूं … फूलों के अंगारे है
चलता हूं तो महकता हूँ , इनाम में मिले छाले है
साथ हर शख्स का नहीं … एक ही काफी है
वो भी अधूरा है … हम राह – ए – जिंदगी में अकेले ही चलने वाले है
थोड़ा और इंतजार (प्रतिक्षा) कर मेरे खुदा … थोड़ी नेकी लुटा दे बस
कहाँ जायेंगे तेरे पास ही आने वाले है
तूने बहुत की मोहब्बत हमसे ,अब तुझपर इश्क लुटाने वाले है …
थोड़ी नेकी लुटा दे बस कहाँ जायेंगे , तेरे पास ही आने वाले है….
जीवन वैसे तो क्षण भंगुर है किन्तु कभी कभी दिन और रात का व्यतीत होना भी किसी संघर्ष से कम नहीं होता इसी में किसी का साथ समय को आसान करता है और इसके विपरित अकेलापन अपने आप में एक नई चुनौती है साथ ही इस चुनौती को स्वीकार लेना आपको अपनी आप में एक नए आयाम में ले जाता है …समय सदैव एक जैसा रहे या सदैव आपके पक्ष मे रहे जरूरी नहीं …. समय कि हर ऋतु से परिचित होना ही जिंदगी है कभी पतझड़ तो कभी सावन … कभी ग्रीष्म तो कभी शरद और ये समय खुद तो बदलता है साथ साथ हालात बदलता है लोगो की हकीकत सामने लता है इसीलिए एक समय के बाद आदमी स्वयं भी बदल जाता है वो अपनी सोच को दृष्टिकोण को बदल लेता है | समय हर पीड़ा हर घाव को भर देता है हमने ये पंक्ति तो कई बार सुनी होगी जबकि वास्तविकता तो है कि हमे अभ्यास हो जाता है पीड़ा को सहन करने का और जब जब बीते कल के स्मरण आज मे आते है तो ये पीड़ा और अधिक बढ़ जाती है | हम सभी समय के साथ साथ सहने कि शक्ति को बढ़ाते जाते है पीड़ा वही रहती है |
समस्याओ का पीड़ाओ का कोई अंत नहीं है … ये प्रमाण है कि हम जीवित है जीवन को जी रहे है क्योकि अनुभव का जो गुण है वो जीवंत का ही है मृत्यु के पश्चात दैहिक पीड़ा नहीं रहा करती है | यथार्थ तो तही है कि हमे और अधिक मजबूत और अधिक समझदार और अधिक परिपक्व करने का साधन है … जो कि यथार्थ का परिचय है ।