दूर या पास

जिन्दगी मे  कई दफा ऐसा हुआ होगा …कि किन्हीं से दूर जाने का डर इतना ज्यादा होता है कि हम उनके इतने नजदीक रहते है कि.बस  बात बंद न हो… पर इन बातो में महज लफ्ज होते है अहसास नहीं क्योंकी हमे खुद खबर नही कि सामने वाला व्यक्ति किस तरह जवाब देगा… देगा भी या नहीं देगा बस सही वक्त …सही शाम …सही वो चाय की प्याली के इंतजार में उम्र गुजर रही है और इनमे अक्सर ऐसा हुआ है आप सही वक्त का इंतज़ार कर रहे हैं इतने में कोई आर पार की जंग लड़कर आपको इस कहानी में खास किरदार से आम किरदार कर गया इसीलिए कहा गया कि हर बार सही वक्त का इंतज़ार करने से बेहतर है वक्त को सही किया जाएं…. ये दो नावों में सवार होने की ख्वाहिश में ना सफर अच्छा होता है और मंजिल का तो क्या ही कहे ….

 

|| कश्मकश ||

दूर जाने से डर लगता है… इसलिए दिल दुःखा देते हैं

जाना… ! बहुत क़ीमती है वक़्त तुम्हारा… चलो अब तुझसे दूरी बना लेते हैं

ये कैसी ज़िद है तुम्हारी … हाथ पकड़ा भी नहीं और छोड़ना भी नहीं चाहते

सच बयां नहीं कर पा रहे हो , चलो हम ही बहाने बना लेते हैं

एक तेरी उसूल -ए -मोहब्बत है जो तुझे मोहब्बत नहीं करने देती

हमारा होना ही खुशी है उसकी … होगी शायद , चलो ये भी मान लेते हैं

ये ख्वाब जो जागने पर मजबूर कर रहे है और जो नींद से बेवफ़ाई हो रहीं हैं

लकीरों में दर्द दिख रहा है , हम आँखों से दिल का हाल पहचान लेते हैं

झुकी पलके बता रहीं हैं , तहज़ीब तालीम से खानदानी है वो

काबिल -ए- एहतराम है शख्सियत जिनकी , खामोशी में भी लफ्जों को अंजाम देते हैं

पाकीजगी सा कुछ है जो बयां हो नहीं सकता , हाँ खामोश रहने देते है

नाम के रब्त निभाने से अच्छा है… क्यों रब्त को कोई नाम देते हैं

किसी में लाख खूबियां ही सही लेकिन वो आपके हिस्से नही आना चाहते है तो कितना ही क्यों ना हो, सुकून नही हो सकता …. जो रहता है वो बस एक शिकायत सा, शिकायत भी ऐसी जो बयां ना हो

हमेशा सफर को सही अंजाम देने के लिए हमे पता होना चाहिए हम क्या कर रहे और इसके क्या नतीजे मिल सकते है । अगर हम किसी कहानी का हिस्सा नहीं है तो अपना किरदार खुबसूरती से निभा कर कहानी से बाहर हो जाएं और हम कहानी का हिस्सा है तो ऐसा किरदार बने कि आपके बगैर कहानी कहानी ना लगे …. आप अपनी कहानी की जान बने कि आप कहानी के बाद भी खुद को जिंदा रखे कि पर्दे के गिरने के बाद भी वाह वाही हो… तालियों का शौर हो …कि आपका आयें ऐसा दौर हो  |

हमेशा अपना हिस्सा बेहतरीन करे , अपनी ओर से सौ प्रतिशत भागीदारी निभाएं …आपको आपकी मंजिल अपने आप मिलती चली जाएंगी और जब आप अपना सौ प्रतिशत देते है तो सफर का मजा आना लाज़मी हो जाता है

 

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