भौतिकता या आत्मीयता
हर चीज को भौतिक रूप में पाना ही हमे सबसे ज्यादा जरुरी लगता है किंतु हम इस बात को भूल जाते हैं कि जो उससे जुड़े अनुभव है …. अहसास है ,वह इससे ज्यादा कीमती और महत्त्वपूर्ण होते हैं । भौतिकता का, स्पर्श का या प्रत्यक्ष होने का अपना एक अलग अनुभव किंतु यह क्षणिक भी है क्योंकि जब तक वह सामने हैं तब तक ही वह आपको खुश या संतुष्ट कर सकते हैं जबकि आत्मीयता का जो अनुभव उससे हर पल आप सुख प्राप्त कर सकते है उसके लिए आपको कभी कभी उस चीज भी जरूरत नहीं होती है जिसकी आप प्रत्यक्ष कल्पना कर रहे हैं ….
जरूरी है क्या …. इस चीज का मापदंड तय करने के लिए तो सबसे पहले आपको यह तय करे कि आप क्या चाह रहे है कि सिर्फ किसी का होना या किसी का इस तरह साथ होना जिसे अलग ना किया सके …
जरूरी है क्या
छू जाने के लिए छुना जरूरी है क्या
तुझे पाने के लिए तेरा होना जरूरी है क्या
सुना हर किसी की आँखों में चाहत है तेरी
पर इश्क के लिए कोई तस्वीर होना जरूरी है क्या
कुछ रब्त खामोश है , तुझे ख़बर है काफी है
तन्हाइयों के सफर में महफ़िलों की सौगात जरूरी है क्या
एक वक़्त की चाहत और वक़्त ही नहीं
इसके एवज में रकमों के इनामात जरूरी है क्या
हमे तो वो रूहानी हवायें भी सुकूं देती है जो तुझसे गुजर कर आती है
अब सुकूं के लिए तुझसे मुलाकात जरूरी है क्या
रूह को रूह की आरज़ू रहीं हैं हमेशा
तो मुझे बुलाने के लिए जिस्म का लिबास जरूरी है क्या
तुझसे तेरी खुशनसीबी की ख्वाहिश रहीं है बस हमे
इस जहां में तेरा सलामत होने के बाद , हमारा होना जरूरी है क्या
आप किसी के साथ आत्मीयता से जुड़ सकते है पर प्रकृति ने आपको भौतिक रूप से अलग अलग बनाया है तो सभी के काम…. इच्छाएं ….जिम्मेदारियां सभी अलग अलग है हमे ये तय करना जरुरी है हर पल कोई नही हमारे प्रत्यक्ष हो सकता है ….. किसी काम से या कारण से उसका अलग होना अलग नही है अगर कोई मन से साथ है और कोई मन से ही साथ नही तो घंटो आपके सामने हो क्या अर्थ है इसमें | कभी कभी किसी का विचार मात्र आपको आपकी पीड़ाओ से दूर ले जाता है … हम इसी आत्मीयता की बात कर रहे है , इसका अर्थ कदापि यह नहीं है भौतिकता का कोई महत्व नहीं है …. हर चीज अपनी जगह जारी है किन्तु जो सबसे ज्यादा जरूरी हो उनकी अनुपस्थिति मे उनके अतिरिक्त कोई न होना इस प्रकार के आत्मीय सबंध से बेहतर क्या है …. विचार कीजिए